सपने में सपना

     बाल कहानी          सपने में सपना              डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’                                     
              राजुल ने पलटकर देखा तो वह हैरान रह गया। सामने प्रधानाचार्य वाले दफ्तर के बाहर उसकी नाम की पट्टिका लटकी थी- ''प्रधानाचार्य राजुल उपाध्याय'' फिर उसने अपने आप को निहारा, अरे ये क्या! वह स्वयं प्रधानाचार्य की तरह ही कपड़े पहने हुए है।
अपना नाम लिखे दफ्तर में वह प्रवेश कर गया तो उसे ये देखकर और भी आश्चर्य हुआ कि सामने की सजी-धजी मेज पर भी उसका नाम लिखी एक सुन्दर सी पट्टिका रखी है। एक टेलीफोन भी मेज पर रखा है।
वह प्रधानाचार्य की तरह ही कुर्सी पर बैठ गया। उसे आश्चर्य हो रहा था कि वह तो केवल सोचा ही करता था कि अगर वह स्वयं प्रधानाचार्य बन जाय तो मौज जाये।
अक्सर ही उसे इस बात की भी ईर्ष्या होती कि इतनी भीषण गर्मी में प्रधानाचार्य जी के दफ्तर में तो कूलर लगा है और हम विद्यार्थियों के कमरों में ठीक से पंखे भी नहीं चलते। गर्मी भर हाथ में पकड कॉपी को हिला-हिला कर हवा करनी पड ती है। ऐसे ही जाड के दिनों में प्रधानाचार्य जी अपने दफ्तर में हीट कन्वेक्टर लगा कर कैसा सुखमय बनाए रखते हैं। जबकि कक्षाओं की टूटी-फूटी खिड कियों और दरवाजों से आती शीत लहर छात्रों को ठिठुरा जाती है।
राजुल मन ही मन सोचता कि पढ ाई के बाद वह भी प्रधानाचार्य बनेगा। फिर तो मौज ही मौज है। ऐसे ही दफ्तर में वह बैठा करेगा जिसमें गर्मी में कूलर तो जाड के दिनों में हीट कन्वेक्टर लगा होगा। सामने मेज पर उसके नाम की पट्टिका और पास ही टेलीफोन होगा। सामने एक कोने में पानी भरा फिल्टर जग और कुर्सी के पीछे कोमल सी रोंयेदार तौलिया लटकी होगी। दरवाजे पर खड चौकीदार उसकी एक घंटी पर दौड चला आया करेगा। तब वह रौब के साथ आदेश देगा- 'कक्षा १० के कक्षा अध्यापक को बुलाकार लाओ।'

बच्चों के दाखिला के समय प्रधानाचार्य जी कैसा रौब मारते हैं। नये-नये नियम कानून बना डालते हैं जिससे बच्चों के अभिभावकों को कितनी परेशानी होती है। वह प्रधानाचार्य बन गया तो सब बच्चों का दाखिला कर लेने का आदेश दे देगा।
बीमार पड़ जाने के कारण एक बार सोनू पांच दिन तक स्कूल नहीं सका था। जिससे उसका नाम ही कट गया था। सोनू के गरीब माँ-बाप कितना गिड गिड ाए थे प्रधानाचार्य जी के सामने। पर उन्होंने, उनकी एक भी बात नहीं सुनी थी। जबकि रोहित के मम्मी-पापा अपनी चमचमाती कार से आये तो उन्हें अपने दफ्तर में बैठाकर चाय भी पिलाई और रोहित का नाम भी लिख लिया था। वह प्रधानाचार्य होता तो हरगिज ऐसा भेदभाव बरतता।
ऐसी ही बहुत सी बातें राहुल मन ही मन सोचता रहता। प्रधानाचार्य जी के दफ्तर के सामने से आते-जाते समय उसकी सोच और भी तेज हो उठती।
पर ये क्या! वह तो प्रधानाचार्य बन गया। ''लेकिन ये चमत्कार इतनी जल्दी कैसे हो गया।'' - राजुल ने मूविंग चेयर पर इधर-उधर घूमते हुए सोचा। ''ये किसी परी का जादू है या फिर वह कोई सपना देख रहा है?'' - उसने चेयर की बैक पर टंगी तौलिया से हाथ रगड और फिर टेलीफोन का रिसीवर उठाकर एक नम्बर डायल किया। तो दूसरी ओर से घंटी बजने की आवाज आने लगी। फिर उसने अपने पैर में चिकोटी काटकर देखा तो दर्द होने लगा। इसका मतलब है कि वह सपना नहीं देख रहा। हकीकत में ही वह प्रधानाचार्य बन गया है।
उसने कॉलबैल बजाई। ट्रिन की आवाज होते ही चपरासी आकर खड हो गया- ''जी, सर'' - चपरासी ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड े।
''मोहन, सभी कक्षा अध्यापकों से कहो, अपने-अपने कक्षा रजिस्टर लेकर आयें।''
''जी सर!'' - कहते हुए मोहन चला गया। थोड ही देर में सभी कक्षाओं के अध्यापक गये।
''आपने याद किया सर?''                                                     --
''हाँ, बैठिए और बताइये कि आप की कक्षाओं में कितने-कितने विद्यार्थी हैं?''''जी पचास विद्यार्थी।'' - कक्षा सात के कक्षा अध्यापक बोले।
''४५ सर!'' कक्षा आठ के अध्यापक ने बताया।
''पचपन, साठ!'' - इसी तरह सभी ने विवरण दिया।
''अच्छा, अब ये बताइये कि आपकी कक्षा में कमियाँ क्या-क्या हैं? मेरा मतलब कुछ मरम्मत कार्य या फर्नीचर आदि की कमी से है।''
''सर, हमारी कक्षा में पंखे खराब पड़े हैं। गर्मी के कारण बच्चे अपनी किताब-कॉपियों से हवा करने लगते हैं। इस तरह उनका ध्यान पढ ाई पर केन्द्रित नहीं हो पाता।'' - कक्षा छह के कक्षा अध्यापक राघवन ने बताया।
''मेरी कक्षा का श्यामपट टूट गया है सर। इसलिए लिखा गया वाक्य विद्यार्थी ठीक से पढ  नहीं पाते हैं।'' कक्षा सात के कक्षा अध्यापक रंगनाथन ने अपनी परेशानी बताई तो कक्षा आठ के कक्षा अध्यापक सारस्वत जी ने फर्नीचर की कमी बताई।
उसने सभी की शिकायतों को बड ध्यान से सुना तथा अपनी डायरी में नोट कर लिया फिर .सी. साहब को फोन मिलाकर ये सारी बातें उनके सामने रखीं और इन समस्याओं के शीघ्रातिशीघ्र निवारण का प्रबन्ध करने की प्रार्थना की। किन्तु ''फण्ड नहीं है।'' कहकर .सी. साहब ने मना कर दिया तो वह तिलमिला उठा। पर अध्यापकों को आदेश दिया कि गर्मी का मौसम है, आप लोग ऐसा करें कि सबसे पहले जिन-जिन कक्षाओं में पंखे खराब पड हैं उन्हें मरम्मत के लिए दे दो। इसके लिए अपनी ओर से मैं लिखित में आदेश कर देता हूँ।
''ये तो बहुत अच्छी बात होगी सर।''- सभी ने प्रसन्नता व्यक्त की।
मरम्मत कार्य पूरा भी नहंी हो पाया था कि उसके खिलाफ .सी. साहब का पत्र गया। उसे क्रोध तो बहुत आया पर वह शान्त ही रहा। - ''भला ये भी कोई बात हुई, सही काम करने पर भी दोष-पत्र।''
दूसरे दिन वह अपने दफ्तर में आकर बैठा ही था कि एक बच्चे के साथ उसके अभिभावक गये। वो उस बच्चे को स्कूल ंमें प्रवेश देने के लिए आग्रह करने लगे। राजुल ने उन्हें आदर के साथ कुर्सी पर बैठाया तथा बाबू को बुलवाकर, बच्चे के प्रमाण-पत्र देखने को कहा।
बाबू ने प्रमाण-पत्र आदि जांचने के बाद बताया कि इस बच्चे का प्रवेश हमारे विद्यालय में मान्य नहीं है। इसमें तो केवल केन्द्रीय विद्यालय के स्थानान्तरण पत्र के आधार पर ही प्रवेश दिया जाता है। राजुल ने बच्चे के अभिभावकों को अपनी असमर्थता बताई- ''क्षमा करें, मैं चाहता हूँ कि आपके बच्चे को मेरे विद्यालय में प्रवेश मिल जाय किन्तु विद्यालय के नियमों के विरुद्ध तो मैं भी नहीं जा सकता।''
इस बात से बच्चे के अभिभावक उसे बुरा-भला बोलने लगे तथा ''देख लेने की धमकी'' देते हुए चले गये। उसका भावुक हृदय बहुत दुखी हुआ। पहली बार उसने महसूस किया कि प्रधानाचार्य का कार्य भी इतना सरल नहीं, जितना कि वह सोचा करता था। वास्तव में चाहकर भी वह बहुत से कार्य कर पाने में अपने को असमर्थ पा रहा है। कहीं विद्यालय के नियम आड़े जाते हैं तो कहीं अनुशासन तो कहीं कुछ और।
इस घटना के बाद वह ठीक से सामान्य भी नहीं हुआ था कि कक्षा आठ के कक्षा अध्यापक दो विद्यार्थियों को पकड  कर ले आये- ''सर, इन दोनों ने मिलकर अपनी कक्षा के विनोद को बहुत पीटा है और हॉकी से उसका सिर फोड  दिया है।''
शिकायत सुनकर राजुल क्रोध से तिलमिला उठा। जी में आया कि अभी अपनी कुर्सी से उठे और दोनों विद्यार्थियों की जमकर पिटाई कर दे। किस बबाल में फँस गया वह। ये प्रधानाचार्य का पद तो बड झंझट का है।
उसने दोनों विद्यार्थियों की ओर क्रोध से घूरते हुए एक के गाल पर जोरदार चाँटा जड  दिया- ''विद्यालय से निकाल दो इन्हें। नाम काट दो इनका।''
राजुल का चीखना सुनकर किचिन में खाना बनाती माँ, दौड चली आई- ''क्या हुआ? क्यों रे, किसका नाम कटवा रहा है स्कूल से।''
मम्मी की तेज आवाज सुनकर वह हड बड कर उठ बैठा। उसका हाथ भी झन-झना रहा था, शायद पलंग के सिरहाने जोर से लगा था। उसने झेंपते हुए कहा- ''धत्तेरे की, सपने में भी सपना।'' और हँसते-हँसते राजुल सपने की सारी बातें माँ को बताने लगा।

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बाल वाटिका  मार्च-2019 में प्रकाशित प्रेरक बाल कहानियाँ की समीक्षा

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