पुस्तकों की हड़ताल


बाल कहानी-      पुस्तकों की हड़ताल          डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’

'आकाशदीप, आकाशदीप' - अपना नाम सुनकर आकाशदीप ने पीछे मुड कर देखा तो बासु ने हाथ में पकड परीक्षा कार्यक्रम उसे थमा दिया- ''लो, आज तुम कक्षा में दिखाई नहीं दिये तो तुम्हारा कागज भी मैं ही ले आया, अगले सप्ताह से परीक्षा शुरू होगी।''
धन्यवाद कहकर आकाशदीप ने बासु से परीक्षा कार्यक्रम का कागज ले लिया और खोलकर पढ ने लगा-
'अरे, इस बार तो सारे पेपर लगातार हैं, बीचमें एक दिन की भी छुट्टी नहीं।'
उसने सारी पुस्तकें एवं नोट् ढूंढ कर रैक में रखने शुरु किए ताकि परीक्षा के समय ढू ने में परेशानी हो, 'अरे अंग्रेजी की पुस्तक किधर है? मम्मी आपने मेरी पुस्तक देखी हैं क्या?'
बस्ते में पुस्तक ँूढ ते हुए उसने पूछा तो मम्मी ने डांट दिया-
''मुझे क्या पता है तेरी पुस्तकों का। कभी सही जगह रखे तो मिलें पुस्तक, स्कूल से लौटते ही तो तू फैंक देता है इधर-उधर।''
मम्मी की डांट सुनकर वह चुप रह गया पर ढूं ने पर उसे एक भी विषय की पुस्तक नहीं मिली आज। चलो नोट् ही रखता हूँ। सोचकर उसने नोट् ढू ंढ ने शुरू किए- ये भूगोल का नोट्स। ये इतिहास का! दोनों नोट् अलग-अलग हाथों में पकड हुए उसने एक-दूसरे में मारे और धूल साफ कर रैक में रख दिए।
अंग्रेजी, विज्ञान के नोट् किधर हैं। उसने फिर खोजना शुरू किया। हाँ, अंग्रेजी का यह रहा।
पुराने अखबारों के बीच से अंग्रेजी के नोट् बाहर खींचकर उसने दूसरे हाथ से थपथपा कर धूल झाड  दी। इसको भी रैक पर रख देता हूँ।
वह रैक की ओर बढ तो यह देखकर चौंक पड कि थोड देर पहले रखे इतिहास, भूगोल के नोट् भी रैक से गायब हैं।
वह झुंझला उठा! अभी तो इतनी देर में कोई रैक के पास आया भी नहीं, नोट् कहाँ जा सकते हैं। वह रुँआसा हो उठा, तभी उसके कानों में किसी के खिल-खिलाकर हँसने की आवाज गूंजी।
ऐं! ये कौन हँसा! मेरी पुस्तक नहीं मिल रही! नोट् नहीं मिल रहे और ये ऊपर से हँसने वाला कौन आया! गुस्से में वह चिल्लाया-
          ''कौन है? मैं तुम्हें मारूँगा, हँसोगे तो!''
एक बार फिर हँसी गूंज उठी! उसने घूमकर देखा तो देखता ही रह गया!
गणित, अंग्रेजी, हिन्दी, भूगोल सब विषयों की पुस्तक एक-दूसरे के हाथ में हाथ डाले आकाशदीप को परेशान खीजता देखकर खिलखिला उठीं। यहाँ तक कि अभी-अभी थोड़ी देर पहले रैक पर रखे इतिहास, भूगोल के नोट् भी उन्हीं हँसने वालों में शामिल हैं।
''किसको ढू ंढ  रहे हो आकाशदीप?'' भूगोल के नोट् ने हँसकर देखा।
''आपको ही तो ढूढ  रहा हूँ।'' गुस्से को दबाते वह हुए बोला।
''क्यों, हमको क्यों ढू ंढ  रहे हो?'' इतिहास की पुस्तक ने आँख मटकाई।
''पाँच दिन बाद परीक्षा शुरू हो रही हैं ! आप नहीं मिलोगी तो मैं तैयारी कैसे करूँगा?'' रुँआसा सा वह बोला।
''अच्छा तो लल्लू को परीक्षा के कारण हमारी याद आई है। पूरे वर्ष हमें इधर-उधर फैंकते रहते हो, तब याद नहीं आती। देखो कैसी बुरी हालत हो गई है मेरी।'' अंग्रेजी की पुस्तक ने ताना मारा।
''और मुझे तो देखो, कवर चढ ाना तो दूर मेरे शरीर के अन्दर ब्लेड चला-चलाकर सारे चित्र भी काट लिए हैं।'' हिन्दी की पुस्तक ने जगह-जगह से अपना कटा शरीर दिखाया।
''इसलिए हम सब हड ताल पर हैं तथा हमने फैसला कर लिया है कि तुम्हारे पास नहीं रहेंगी अब? सारी पुस्तक एक साथ बोलीं।''
''नहीं-नहीं ? ऐसा मत कहो, मैं फेल हो जाऊँगा?'' आकाशदीप ने हार मानते हुए हाथ जोड े।
''नहीं ऐसे नहंी पहले कान पकड कर दस बार उठक-बैठक लगाओ और वायदा करो कि अपनी लापरवाही की आदत को छोड , भविष्य में सभी पुस्तकों को साफ-सुथरा रखोगे तथा कहीं भी फेंक देने की बजाय सही जगह पर रखोगे। पृष्ठों को ब्लेड से काटोगे भी नहीं।
''मैं वायदा करता हूँ ...... मैं वायदा करता हूँ.... आप हड ताल मत करिए।''
''अरे किस चीज का वायदा कर रहा है आकाशदीप?'' माँ, की आवाज सुनकर आकाशदीप की आँखें खुल गईं।
''अरे वह तो एक सपना था।'' बिस्तर से उठते हुए उसने माँ के पैर छुए- ''माँ, भले ही वह सपना था पर मैंने जो वायदा किया है उसे पूरा करूँगा।'' कहकर उसने सपने की सारी बातें माँ को बता दीं।
माँ, ने मुस्कराकर उसके सिर पर हाथ रख दिया- ''चल सपने से ही सही, तुझे समझ तो आई।




बाल कहानी- आई वांट टू सी            डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’

        ‘‘बाबा,जरा अपना मोबाइल देना।’’-स्कूल से आते ही सक्षम ने कहा तो मैंने उसके चेहरे की ओर देखा। वह स्कूल का बैग अपने कमरे में रखकर सीधा मेरे पास चला आया था।
        ‘बेटा,पहले अपने स्कूल की ड्रैस उतार कर ,हाथ-मुँह धोलो।दूसरे कपड़े पहन कर कुछ खा-पी लो फिर मोबाइल मांगना। मैंने कहा तो सक्षम ने ‘‘हाँ’’ में गर्दन हिलाई और कपड़े बदलने अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद जब सक्षम मेरे पास फिर आया तो उसका चेहरा एकदम तरोताजा लग रहा था।
         ‘‘बाबा, अब तो दे दो मोबाइल।’’-सक्षम ने कहा तो मैंने मोबाइल उसके हाथ में देते हुए उसे अपने पास ही बैठा लिया, यह देखने के लिए कि यह मोबाइल का क्या करेगा।
         मोबाइल को अपने बाँये हाथ में पकड़कर सक्षम ने अपने सीधे हाथ की तर्जनी उंगली से मोबाइल की स्क्रीन को छूआ और कुछ खोजने लगा। थोड़ी देर बाद मेरे चेहरे की ओर देखते हुए बोला,-‘‘बाबा, आपके मोबाइल में गेम्स कौन-कौन से हैं?’’
        ‘बेटा मुझे तो पता नहीं, इसमें गेम्स भी होते हैं।’
       ‘‘अरे बाबा, आपको नहीं पता! इसमें सब तरह के गेम्स होते हैं। एयरोप्लेन रेस ,ट्रेन रेस , आर्मी ट्रक रेस, लूडो ,साँप-सीढ़ी और कार रेस भी। और भी बहुत सारे गेम्स।’’-उसने बहुत सारे गेम्स के नाम गिना दिए।
        ‘अच्छा !,मुझे तो पता ही नहीं था।’-मैंने आश्चर्य प्रकट किया,-‘ तुमको कौन सा गेम सबसे अच्छा लगता है?’
        ‘‘मुझको, मुझको कार रेस में बहुत आनन्द आता है बाबा। दिखाऊँ आपको?’’
        ‘हाँ-हाँ, दिखाओ, मैं भी तो देखूँ तुम्हारी कार रेस।’- मैंने उसे उत्साहित किया।
        सक्षम ने अपने बाँए हाथ में मोबाइल को पकड़े-पकड़े ही सीधे हाथ के अंगूठे और तर्जनी उंगली की सहायता से मोबाइल का प्ले स्टोर खोला और उसमें से एक सुन्दर सी कार चुनकर ,कार रेस का गेम इनस्टाॅल करने लगा। गेम इनस्टाॅल होते ही उसने सीधे हाथ और बाँए हाथ के अंगूठे की सहायता से कार को दौड़ाना शुरू कर दिया। दांए, बांए और सामने के अवरोधों से कार को बचाने के लिए वह अपने दोनों हाथों के अंगूठों को मोबाइल की स्क्रीन पर बने आइकनों (बटनों) पर बहुत तेजी से चला रहा था।
       ‘‘बाबा, आज तो गाने सुनने का मन कर रहा है।’’-अगले दिन स्कूल से आकर सक्षम ने मेरे पास बैठते हुए इच्छा प्रकट की।
       ‘सुन लो बेटा, नीचे के कमरे में स्टीरियो रखा है। चलो चला देता हूँ।’-मैंने उठते हुए कहा।
       ‘‘नहीं बाबा, स्टीरियो से नहीं , आपके मोबाइल में से सुनने हैं गाने।’’-उसने मेरा मोबाइल लेने के लिए अपना हाथ आगे किया तो मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा,-‘‘अच्छा तो गेम्स की तरह ही मोबाइल में अब गाने भी आने लगे क्या?’
       ‘‘और नहीं तो क्या। आप जो भी गाना सुनना चाहो, वही गाना सुन सकते हो।’’
       ‘अरे वाह, ये तो बहुत अच्छी जानकारी दी तुमने।’-मेरा भी आश्चर्य बढ़ता जा रहा था,-‘और क्या-क्या चीज मोबाइल में देख-सुन सकते हैं?’
       ‘‘बताऊँ बाबा? आप कोई सी भी जानकारी प्राप्त करना चाहो जैसे किसी की कोई पुस्तक पढ़ना चाहो, किसी के बारे में जानना चाहो, तो भी पढ़ सकते हो और देख सकते हो। इतना ही नहीं बाबा, आप कोई सा कार्टून देखना चाहो तो वह भी मोबाइल से देख सकते हो और तो और अगर आप अपनी गाड़ी से कहीं जा रहे हो और आपको वहाँ पहुँचने का रास्ता नहीं मालुम तो आपका मोबाइल आपको रास्ता बताता चलेगा कि अब आपको किधर को मुड़ना है किधर को चलना है।’’
       ‘अच्छा !’-मैंने आश्चर्य प्रकट किया तो सक्षम प्रसन्नता से झूम उठा और बोला,-‘‘आपको यह सब नहीं पता था न बाबा?’’
       ‘हाँ बेटा, मैं तो पहली बार सुन रहा हूँ यह सब तुम्हारे मुँह से। पर यह सब कुछ तुमने किससे सीखा और जाना?’
       ‘‘मैंने सीख लिया बाबा, मम्मी-पापा के मोबाइल से सीख लिया। आपको भी बताऊँ?’’-खुशी से नाचते हुए सक्षम ने मोबाइल मेरे हाथ से ले लिया और अपने सीधे हाथ की तर्जनी उंगली से मोबाइल की स्क्रीन को ऊपर से नीचे की ओर स्लाइड करने लगा। उसके बाद इण्टरनैट व वाई-फाई चालू करने लगा। मैं अनजान बना उस छह वर्ष के बच्चे को यह सब करते हुए आश्चर्य चकित हो देख रहा था और वह अपनी धुन में मस्त गूगल प्ले पर अपना अंगूठा रखकर कह रहा था-‘‘आई वाण्ट टू सी मोटू-पतलू कार्टून।’’


बाल कहानी-    दिल्ली की सैर                    डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’
                      

        अपने स्कूल जाने की तैयारी करते हुए सक्षम ने मेरी ओर देखा और पूछ बैठा-‘‘बाबा, आप इतनी जल्दी कहाँ जाने की तैयारी करने लगे आज?’’
      ‘मैं? मुझे आज दिल्ली जाना है बेटा। दिल्ली से आपको कुछ मंगाना है क्या?’
‘‘नहीं बाबा, मेरे पास तो सब कुछ है, आप बस जल्दी लौट आना। शामको खेलेंगे।’’-स्कूल ड्रैस पहनते हुए उसने मेरी ओर देखा फिर जैसे उसे कुछ याद आया, वह उत्साहित होते हुए बोला,-‘‘ आप दिल्ली जा रहे हो न? तो ऐसा करना कि वहाँ प्लेनेटोरियम भी देख आना। बहुत आनन्द आयेगा आपको।’’
      ‘अच्छा! ये प्लेनेटोरियम क्या होता है बेटा?’-मैंने अनजान बनते हुए उससे प्रष्न किया तो वह चंचलता से मेरी ओर देखकर मुस्कराने लगा,-‘‘बाबा, आपको नहीं पता प्लेनेटोरियम क्या होता है?’’
      ‘हाँ बेटा,क्या होता है प्लेनेटोरियम, आपको पता है क्या?’
      ‘‘बाबा, आपको तो कुछ नहीं पता।’’-अपने बाँए हाथ की हथेली पर सीधे हाथ की हथेली मारते हुए सक्षम मुस्कराया,-‘‘प्लेनेटोरियम यानि कृत्रिम सौर ऊर्जा मण्डल । पता है बाबा, एक बड़े से हाॅल में सूरज,चन्द्रमा,सितारे और बहुत से उपग्रह दिखाये जाते हैं।’’
      ‘अच्छा! सूरज,चन्द्रमा और बहुत से उपग्रह भी? लेकिन ये सब एक बड़े हाॅल में कैसे आ सकते हैं भला।‘- मैंने आष्चर्य प्रकट करते हुए सक्षम की ओर देखा तो वह और उत्साहित होकर बोला,-‘‘हाँ बाबा, लगता है आपको तो सचमुच कुछ नहीं पता। आपको आपके टीचर जी ने नहीं पढ़ाया था इसके बारे में? देखो मैं बताता हूँ आपको। जब आप दिल्ली पहुँच जाओ न तो किसी अंकल से पूछ लेना कि मुझे प्लेनेटोरियम देखने जाना है, वो रास्ता बता देंगे। और नही ंतो ऐसा करना बाबा कि आप न स्टेषन से ही आॅटो कर लेना। ठीक है न बाबा? जब आप प्लेनेटोरियम पहुँचेंगे न तो पहले आपको टिकट विंडो से अपनी टिकट लेनी पड़ेगी। पता है बाबा, उस टिकट पर आपके बैठने की सीट नम्बर लिखी होगी। आप उस हाॅल के अन्दर घुसकर अपनी सीट पर बैठ जाना। ठीक है? फिर टार्च जलाकर एक अंकल आयेंगे जो सबकी टिकट चैक करेंगे। आप उनको अपनी टिकट दिखा देना। ठीक है बाबा?’’-सक्षम लगातार बताये जा रहा था तभी मैंने बीच में टोक दिया,-
‘हाँ, ये सब तो ठीक है, पर वो जो मैंने पूछा था कि उस हाॅल के अन्दर चन्द्रमा,सितारे और अन्य उपग्रह .....वो सब कैसे आ सकते हैं, वो बात तो बताओ।’
      ‘‘बाबा...वही तो बता रहा हूँ। आप बस सुनते जाओ। आप बार-बार टोकेंगे तो मुझे स्कूल के लिए देर हो जायेगी और बाबा, आपकी गाड़ी भी छूट सकती है। समझे?
      ‘समझ गया बेटा,अब फिर आप जल्दी से बता दो।’-मैंने उस नन्हे नाती की चपल बातें सुनकर मन ही मन मुस्कराते हुए चुटकी ली।
      ‘‘देखो जब सब लोग अपनी-अपनी सीट पर बैठ जायेंगे न, तो उस हाॅल में अंधेरा हो जायेगा और फिर प्रोजेक्टर चालू हो जायेगा।’’
      ‘प्रोजेक्टर !ये प्रोजेक्टर कहाँ से बीच में आ गया अब? आप तो ग्रह-उपग्रह की बात बताने जा रहे थे ।’
      ‘‘देख लो फिर से टोक दिया बाबा।’’-सक्षम तिरछी नजर से मेरी ओर मुस्कराया,-‘‘मैं वही तो बता रहा हूँ आपको। ये जो प्रोजेक्टर होता है न, इसी में से सभी ग्रह-उपग्रह यानि प्लेनेट निकलकर स्क्रीन पर दिखाई देते हैं। अब समझ गये न बाबा?’’
      ‘नहीं समझा।’-मैंने अज्ञानता प्रकट करते हुए कहा तो सक्षम ने अपने सीधे हाथ की चारों उंगलियों को अपने मांथे पर हल्के से मारते हुए मेरी ओर देखा,-‘‘ओफ्फो, बाबा आपने हाॅल के अन्दर कभी मूवी देखी है?’’
      ‘हाँ, देखी तो है।’
      ‘‘तो फिर आप ये समझ लो कि जैसे पिक्चर हाॅल में सामने लगी स्क्रीन पर जो मूवी दिखाई देती है, वह प्रोजेक्टर से ही तो चलाते हैं। ऐसे ही प्लेनेटोरियम का जो प्रोजेक्टर होता है न बाबा, वह थोड़ा अलग तरह का होता है। उसमें सभी प्लेनेट अलग-अलग दिषाओं में घूमते हुए दिखाई देते हैं। बिल्कुल सचमुच के आसमान की तरह। बहुत आनन्द आता है बाबा, आप देखना।’’
      ‘अच्छा!’
      ‘‘हाँ, आप जरूर देखना। और एक और मजेदार बात बताऊँ बाबा?’’
      ‘हाँ-हाँ बताओ।’’
      ‘‘जैसे ही उस हाॅल के अन्दर अंधेरा होता है न और रात का सीन चालू होते ही तारे टिमटिमाने लगते हैं तो बहुत सारे लोग तो देखते ही देखते , रात समझ कर सो जाते हैं अपनी कुर्सियों पर।’’
      ‘अच्छा आप भी सो गये थे क्या?’
      ‘‘नही ंतो.....।’’-सक्षम ने षरमाते हुए तिरछी नजर से मेरी ओर देखा फिर षरारत से बोला,-‘‘हाँ आप भी मत सो जाना बाबा।’’
      ‘ठीक है, नहीं सोऊंगा। प्लेनेटोरियम देखने के बाद फिर और क्या चीज देख्ूँा?’-मैंने सक्षम को कुरेदा तो अपने मोजा पहनते हुए मेरी ओर देखने लगा,-‘‘जब आप प्लेनेटोरियम देख लो और आपके पास टाइम और हो बाबा तो फिर आप ऐसा करना कि रेल म्यूजियम भी देख आना।’’
      ‘रेल म्यूजियम भी है दिल्ली में?’
      ‘‘और नही ंतो क्या। इसका मतलब ये हुआ बाबा कि अभी तक आपने रेल म्यूजियम भी नहीं देखा है।’’
      ‘हाँ बेटा, देखा तो नहीं है। आपने देखा है? क्या होता है रेल म्यूजियम में?’-मैंने धीरे से मुस्कराते हुए उसकी ओर देखा। मेरी अज्ञानता पर सक्षम ठहाकर हँस पड़ा,-‘‘उल्लू बना रहे हो मुझको।’’
      ‘नहीं बेटा, उल्लू नहीं बना रहा। सच्ची-मुच्ची में नहीं देखा।’
      ‘‘बाबा........ मैं फाइव ईयर्स का हूँ तो भी मैंने दिल्ली में इतनी सारी चीजें देख लीं और इसका मतलब ये हुआ कि आप अपने मम्मी-पापा के साथ कहीं जाते ही नहीं थे क्या? या आप षरारत करते थे इसलिए आपके पापा आपको कहीं ले नहीं जाते थे?’’
      ‘हाँ बेटा, अब आप बता दो तो देख आऊंगा।’-मैंने उसे उकसाया तो उत्साह में भरकर वह बताने लगा-‘‘देखो बाबा, जब आप रेल म्यूजियम देखोगे न, तो एकदम हैरान रह जाओगे। रेल म्यूजियम में स्टीम,डीजल और इलैक्ट्रिक सभी तरह के बहुत बड़े-बड़े और असली इंजन रखे हुए हैं। और बाबा, बहुत सारे तरह-तरह के स्टेषन भी दिखाई दे्रगे।’’
      ‘अरे वाह, फिर तो आनन्द आ जायेगा।’
      ‘‘हाँ, और बताऊँ बाबा? वहाँ पर टाॅय ट्रेन और जाॅय ट्रेन भी हैं जो चलती भी हैं। इतना ही नहीं , रेल म्यूजियम में क्विज भी है। अगर आप सारे गेम्स के सही-सही जबाव दे दोगे न, तो आप जीत जाओगे। ठीक है बाबा, जीत कर आओगे न? प्रोमिज ।’’
      ‘हाँ बेटा, प्रोमिज।’
      ‘‘ठीक है बाबा, अब मैं स्कूल जाता हूँ। फिर कभी आपको और ढेर सारी बातें बताऊँगा।’’-मेरी तरफ देखते हुए सक्षम ने सबके पैर छूए और अपने स्कूल-वाहन में बैठ गया।
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बाल कहानी-             माॅर्निंगवाॅक                डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’

‘‘कल को मेरे दादू आने वाले हैं।’’-यह बात धैर्य सुबह से कई साथियों को बता चुका है। उसकी प्रसन्नता छलकी पड़ रही है। दादू क े आन े पर वह रात का े उनसे ढेर सारी कहानियाँ सुनेगा। उनके साथ गपषप करेगा और ख ू ब मस्ती भी करेगा।-‘‘मम्मी दाद ू कितने दिन की छुट्टी आ रह े हैं?’’- अपनी खुषी प्रकट करते हुए धैर्य ने पूछा।  ‘पूरे एक महीने की।’-मम्मी ने कहा तो वह प्रसन्न होकर उछलने लगा,-‘‘अहा जी,एक महीने तक दादू क े साथ मस्ती करन े को मिल े गा अब ता े । वह भी अपन े पापा क े साथ, दादू को लेने स्टेषन आ गया।  घर पहुँचकर ध ैर्य दादू की गा े द मे ं चढ ़ कर ब ैठ गया ता े मम्मी ने डाँट दिया,-‘पहले दादू का े हाथ-प ैर धा े कर, कपड़ े बदलकर तसल्ली स े ब ैठने ता े द े , फिर चढ ़ ना गा े द मे ं ।’  मँा की डाॅट खाकर ध ैर्य न े मुँह फुला लिया आ ै र दादू की गा े द से उतरकर अपने कमरे म े ं जाकर रा े ने लगा। पापा ने देखा तो उससे रा े ने का कारण प ू छा। रा े ते-रा े ते ही वह बोला कि मम्मी मुझे दाद ू के साथ नही ं
 बैठन े दे रहीं।  नही ं ध ैर्य, मम्मी ने तुमको दादू क े साथ बैठने से मना नहीं किया ह ै। उन्हा े ं ने ता े क े वल इतना कहा ह ै कि दादू यात्रा से हारे-थके आये है।, उन्हें हाथ-मुँह धोकर कपड़े बदल लेने दो, नाष्ता-पानी कर लेने दो, उसके बाद उनसे खूब बात करना।  ‘नहीं पापा,मम्मी न े ऐसे नही ं कहा। उन्हा े ं ने ता े मुझे डाॅटा।’-कहकर वह कमरे के को ं ने मे ं खड़ा होकर और जा े र स े रा े ने लगा।  दादू ने सुना तो उठकर आये आ ैर ध ै र्य को समझाकर अपने साथ ड्राइ्रग रूम मे ं ले आये।  ‘‘दादू कल मेरे स्क ू ल मे ं पेरैण्ट ्स मीटिंग है। आप चला े गे?’’  ‘मैं क्या करूँगा वहाँ जाकर। अपने मम्मी-पापा को ले जाना।’  ‘‘आप भी चलना न दादू।’’-ध ैर्य ने मनुहार की।  ‘हाँ पापाजी, धैर्य ठीक कह रहा है।कल मुझे भी अपने दफ्तर जल्दी जाना है और इसके पापा को भी। तो ऐसा कर लीजिए न कि धैर्य को लेकर आप ही इसक े स्कूल चले जाइयेगा, नही ंता े  ंहम दा े नो ं मे ं से किसी एक का े छुट्टी लेनी पड़ े गी।’  ‘मैंने तो इसका स्कूल देखा भी नहीं है।’- दादू के बोलते ही धैर्य तपाक से बोल पड़ा,-‘‘कोई बात नही ं दादू। मैं बता द ू ँगा न।’’-धैर्य की बात सुनकर दादू हँस पड ़ े ,-‘ठीक है, मै ं ही चलू ं गा त े रे स्क ू ल।’  धैर्य की मम्मी ने धैर्य की क्लासटीचर से क्या-क्या कहना है, ये सारी बातें दादू को समझाईं और फिर किचिन में घुसकर उनके लिए चाय-नाष्ता बनाने लगीं।  दादू के क ुछ भी बोलने से पहले ही, ध ैर्य का े देखते ही उसकी क्लासटीचर ने षिकायता े ं की गठरी खोलकर रख दी,-‘ध ैर्य क्लास मे ं ऊधम बहुत मचाता है। हा े मवर्क प ू रा करके नहीं लाता।क्लास मे ं भी अपना कार्य नहीं करता आदि...आदि।  क्लासटीचर की बाते ं सुनकर तो दादू, धैर्य की मम्मी द्वारा बताई र्गइ  सारी बाते ं ही भ ू ल गये। उनका नाती ऐसे उनका नाम नीचा करेगा, ए े सी तो उन्हे ं उम्मीद भी नही ं थी। उन्ह े ं ध ैर्य पर बहुत गुस्सा आने लगा पर 


उन्होंने उससे स्कूल में कुछ नहीं कहा। घर आकर उन्होंने धैर्य को एक कमरे में बुलाकर, होमवर्क न करने का कारण प ू छा ता े ध ैर्य ने तपाक स े उत्तर दिया-‘‘दादू, टाइम ही नही ं मिलता।’’  स्कूल से ला ैटकर ध ैर्य ने टी.वी.आॅन किया आ ैर मा े टू-पतलू कार्टून देखने लगा। तीन-चार घण्ट े तक टी.वी.देखने के बाद धैर्य ने अपनी साईकिल उठाई और घर से बाहर सड़क पर साईकिल दौड़ाने लगा। अंधेरा हो जाने पर भी वह स्ट्रीटलाइट में अपनी साईकिल से इधर से उधर दौड़ता रहा।दफ्तर से आकर धैर्य के पापा ने उसे आवाज दी और उससे होमवर्क आदि के बारे में पूछा तो वह काॅपी-किताब लेकर पढ़ने बैठ गया। इसी बीच उसकी मम्मी आ गई और उन्होंने अपना पसन्दीदा सीरियल टी.वी.पर चालू कर दिया।  दादू ने ध्यान से देखा कि ध ैर्य अब पढ ़ ाई कम, टी.वी.सीरियल म े ं अधिक ध्यान दे रहा था।  सीरियल खत्म होने पर मम्मी ने सभी को खाना बनाकर खिलाया और दूध दिया। पापा ने इस बीच अपने पसन्द की मूवी टी.वी पर चला ली थी। धैर्य भी अब मूवी देखने लगा था और मूवी पर बीच-बीच में अपने कमैण्ट्स द े रहा था। रात क े ग्यारह बजने को थे। दाद ू को अब नी ं द आने लगी थी। वे अपने बिस्तर पर सा े
 गये।  सुबह पाँच बजे ही दादू फ्रैष होकर माॅर्निंग वाॅक के लिए जाना चाहते थे। उन्होंने धैर्य को भी साथ चलने के लिए आवाज दी लेकिन धैर्य के साथ-साथ उसके मम्मी-पापा भी अभी सोये हुए थे तो वे अकेले ही घ ू मने निकल गये।  षाम का े स्क ू ल से आकर धैर्य ने कपड़ े चे ं ज करक े हाथ-मुँह धा े लिए तो दादू न े उस े दूध-जलेबी खाने को दिए और फिर अपने पास बैठाकर सुबह माॅर्निंगवाॅक की बात बताने लगे जिसमें उन्होंने बगीचे में कई मोर, बीच में तालाब और तालाब में तैरती बतखों को देखा था। साथ ही बगीचे में रहने वाले कई कुत्ते भी उनके दोस्त बन गये और उछल-उछल कर उनकेे हाथ से रोटी खा रहे थे। धैर्य सुन-सुन कर आष्चर्य कर रहा था। ‘‘डा ैगी तो मुझे बहुत अच्छ े लगते है ं दादू, क्या व े मेरे साथ भी दा े स्ती करे ं गे?’’  ‘क्यों नहीं। आप प्यार से उन्हें रोटी दोगे तो वे सारे डौंगी तुम्हारे भी दोस्त बन जायेंगे।’’ ‘‘ और मोर व बतख, क्या उनको भी आपने पास से देखा था ?’’-धैर्य का आष्चर्य बड़ता जा रहा था। और नही ंतो क्या। बिल्कुल पास से देखा था मैंने नाचते हुए मोर को।सुन्दर-सुन्दर पंखों वाला। प्यारा सा मोर ‘‘और बतख?’’   ‘बतख तो पानी में लाइन लगाकर तैर रही थीं। बहुत सुन्दर थीं। उनके बच्चे भी तैर रहे थे।’  ‘‘अच्छा!ता े मुझे भी देखना ह ै ये सब।’’-ध ैर्य ने दाद ू क े कंधा े ं पर अपने हाथ रखकर उचकते ह ुए कहा।  ‘ठीक ह ै, मै ं जैसे बताऊँ वैसे करते चला े तो सुबह का े तुमको भी लेता चल ू ँ गा।’  ‘‘ओ.के.दादू, डन। बोलो क्या करूँ मैं?’’- कंधों पर से हाथ हटाकर दादू के सामने आते हुए धैर्य बोला।  ‘द े खा े मैंने त ुम्हारे लिए ये चैबीस घण्टे का टाइम टेबिल बनाया ह ै। त ुमका े इसके अनुसार ही काम करना होगा -सुबह को पाँच बज े जागना। साढ़ े पाँच बजे तक पोटी,ब्रष व जीभी करक े माॅर्नि ं ग वाॅक के लिए निकलना। छह से साढ़ े छह तक नहाना आ ैर नाष्ता करना।पौन े सात बजे स्क ूल को जाना। फिर स्क ू ल से लौटकर ढाई बजे तक कपड़े चेंज करना,फ्रैष होना और दूध पीना। आधा घंटा आराम और गपषप फिर तीन से साढ़ े पाँच बज े तक स्क ू ल वर्क, हा े म वर्क और सुलेख। साढ़ े पाँच से सात बजे तक साईकिल चलाना व खेलक ूद फिर रात का खाना खाकर कल के लिए स्कूल बैग तैयार करना,जूते-मोजे और पानी की बोतल आदि को सही जगह पर रखकर साढ़ े आठ से साढ़ े ना ै तक दादू से कहानिया ँ सुनना आ ैर फिर सो जाना।’  ‘‘लेकिन म े रे कार्टून देखने का ता े इसमे ं का े ई समय ही नहीं दिया आपन े । मैं कार्ट ू न कब देखूंगा।’’-धैर्य रुँआसा हो आया।  ‘कार्टून के लिए इतवार के दिन का अलग से टाइमटेबिल है बेटा। 


  रात को धैर्य को अपने पास ही सुला लिया दादू ने। सोने से पहले उनसे प्रहलाद की, ध्रुब की और एकलब्य की कहानियाँ सुनकर उसे बहुत अच्छा लगा।  रात को साढ़े नौ बजे ही सो जाने के कारण धैर्य ,दादू के जगाने पर सुबह को पाँच बजे ही जाग गया क्योंकि आज वह पूरे सात घंटे सोया था अतः उसकी नींद भी पूरी हो गई। अन्य दिनों में तो वह रात ग्यारह बजे तक टी.वी.के आगे ही बैठा रहता था और इसलिए नींद भी पूरी नहीं हो पाती थी।  फ ्रैष होकर जब टाइम टेबिल के अनुसार वह दादू क े साथ माॅर्नि ंग वाॅक पर गया ता े उसने अपने सुन्दर-सुन्दर पंखों को फैलाकर कई मोरों को नांचते देखा। उसका मन किया कि वह एक मोर के ऊपर बैठकर आनन्द ले। तालाब में तैरती बतखों व उनके बच्चों को तैरते देखकर तो धैर्य खुषी से ताली बजाने लगा।आज माॅर्निंगवाॅक में बहुत आनन्द आया, प्रसन्न होते हुए वह सारी बातें अपने मम्मी-पापा को बताने लगा।  टाइमटेबिल के अनुसार चलने पर अब कुछ ही दिनो बाद उसे स्कूल में टीचर की पिटाई भी नहीं खानी पड़ती। वह अपना सारा काम समय पर करके जो ले जाने लगा है।   बहू, अब आप दोनों को भी धैर्य के भविप्य के लिए अपने टी.वी.सीरियल देखने और सोने-जागने का टाइम टेबिल बदलना हा े गा।’- दादू ने धैर्य क े मम्मी-पापा को पास बैठाकर समझाते ह ुए कहा।        ’’’ 




बाल कहानी- समाधान डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’
‘‘बाबा  ...बाबा बचाओ...’’ ंकी चीख सुनकर मैं कम्प्यूटर पर काम करना छोड़कर नीचे दौड़ पड़ा।जीने की सीढ़ियाँ उतरते-उतरते मेरे दिल की धड़कन बहुत तेज हो गई थी। नीचे जाकर मैं सक्षम के पास पहुँचा तो मुझे देखते ही वह दौड़कर मुझसे चिपक गया,-बाबा .....बाबा मुझे बचा लो।’’ उसकी आँखों में भय मिश्रित निरीहता टपक रही थी और वह थर-थर काँपते हुए मुझसे चिपका जा रहा था। सामने रौद्ररूप धारण किए निशा हाथ में पकड़ी डण्डी को लपलपा रही थी।
‘‘क्या हुआ बेटी, इस बच्चे को इस तरह क्यों पीट रही हो? क्या गलती कर दी इसने?’’- मैंने सक्षम की मम्मी, निशा की ओर देखा तो उसने हाथ की डण्डी को सक्षम की ओर लहराते हुए क्रोध से फुंकारते हुए कहा,-‘‘इसी से पूछ लो पापा जी, क्या गलती र्की है।’’
अब मैंने सक्षम को अपने आप से लिपटाते हुए और अपने सीधें हाथ से उसके सिर को सहलाते हुए उसके चेहरे की ओर देखा,-‘‘ हाँ बेटू, आप ही बताओ, क्या गलती की है आपने?’’
आँखों से आँसू बहाते हुए सक्षम ने ऊपर को नजर उठाई,-‘‘बाबा मैं क्लास वर्क करके नहीं ला पाया।’’
‘‘अरे रे! क्लास वर्क करके क्यों नहीं लाया मेरा बेटा? ये तो बहुत बुरी बात हो गई,क्यों?’’-सक्षम के सिर पर हाथ फेरते हुए मैंने पूछा तो सक्षम ने कोई उत्तर नहीं दिया तो मैंने एक बार फिर से अपना प्रश्न दोहराया। सक्षम फिर भी मौन रहा तो उसकी मम्मी चीख पड़ी,-‘‘अब आप ही  देख लीजिए पापाजी । इसने मुझे परेशान करके रख दिया है। एक भी दिन स्कूल का काम पूरा करके नहीं लाता। पूछो तो कोई न कोई बहाना बना देता है। अब मैं कब तक दूसरे बच्चों की काॅपियाँ माँग-माँग कर इसका क्लास वर्क पूरा कराऊँ? इसने तो मेरी नाँक में दम करके रख दिया है।’’-निशा लगातार बोले जा रही थी और सक्षम सहमा सा निरीहता से मेरे चेहरे की ओर देखे जा रहा था जिसे देखकर मेरा हृदय पसीज रहा था।
मैं ऐसे में अपने आप को बड़ी दुविधा की स्थिति में पा रहा था। सक्षम के साथ निशा कितनी मेहनत करती है,मुझे सब पता था। सुबह जागने से लेकर रात सोने तक वह सक्षम को एक मेधावी छात्र बनाने की पुरजोर कोशिश में लगी रहती है फिर भी सक्षम को अपने अनुरूप चलता न देखकर , वह खीज उठती है। खीज जब सीमा से पार हो जाती है तो फिर वह थप्पड़, घूंसा और डण्डी से बेरहमी के साथ सक्षम की पिटाई करना  शुरू कर देती है। आज भी वही हुआ। आज उसका ये रौद्ररूप देखकर मैं भी सहम गया।      
     मैंने शान्तिपूर्वक उससे कहा,-‘‘देख बेटी तेरी इतनी मेहनत करने और बार-बार कहने के बावजूद सक्षम तेरे अनुरूप नहीं चल पा रहा तो कुछ तो गड़बड़ जरूर है।’’
‘‘कुछ गड़बड़ नहीं है पापाजी, ये पढ़ाई में ध्यान ही नहीं लगाता। दुनियाभर की बातें बनाने में तो सबसे आगे रहता है पर क्लास में क्या पढ़ाया-लिखाया जा रहा है, इसकी ओर ध्यान ही नहीं देता। सभी टीचर्स के शिकायत भरे फोन सुन-सुन कर मैं तो अब थक चुकी हूँ पापाजी। आप छोड़ दीजिए इसे, मैं आज इसकी हड्डी-पसली तोड़कर ही मानूँगी।’’-कहकर निशा ने हाथ में पकड़ी डण्डी को सक्षम की ओर लहराया तो वह डरकर मेरे शरीर से और ज्यादा सट गया।
सक्षम की कुशाग्रबुद्धि और वाक्पटुता से भी मैं खूब अच्छी तरह परिचित हूँ। आठ वर्ष का बच्चा जिस कुशलता से कम्प्यूटर,लैपटाप एवं मोबाइल के सारे फंक्शन्स जानता है और उनपर काम भी कर लेता है, इतना ही नहीं कैसिओ,गिटार और हारमोनियम बजा लेने के साथ-साथ अपनी मम्मी के साथ मधुर आवाज में फिल्मी गीतों को भी गाकर मुझे आश्चर्य चकित कर देता है। पर क्लास वर्क के लिए इस तरह राज-रोज अपनी मम्मी से मार खाना, उसका ये व्यवहार मुझे सोचने पर विव कर देता है।
मैंने निशा को समझाया,-‘‘बेटी, सक्षम का स्कूल वर्क आदि करके न लाना, मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है। इतना होशियार बच्चा, क्यों ऐसा कर रहा है, कोई बात तो जरूर है इसके साथ।क्यों न कल इसके स्कूल जाकर पता किया जाय?शायद कुछ हल निकले।’’
‘‘कोई बात नहीं है पापाजी,ये दुनियाभर की बातों में लगा रहता है। पढ़ाई में ध्यान केन्द्रित नहीं करता। पढ़ते समय इसके दिमाग में दुनियाभर की बातें घूमती रहती है।’’
‘‘यही तो मैं भी कह रहा हूँ बेटी, कि पढ़ाई में इसका ध्यान केन्द्रित क्यों नहीं होता, इसका पता लगाना जरूरी है। अच्छा ऐसा करो, दो दिन बाद इतवार को मुरादाबाद से मेरे मित्र डाॅ.राकेश चक्र आ रहे हैं। वे योग व एक्यूप्रेशर के विशेषज्ञ हैं। बहुत सारे स्कूलों में जाकर वे विद्यार्थियों की अनेक समस्याओं को हल कर चुके हैं। क्यों न हम उनसे सक्षम के बारे में सलाह लें?’’
‘‘ठीक है पापाजी, मैं तो अब चीखते-चीखते थक चुकी हूँ।’’-कहकर निशा ने जैसे अपनी हार मान ली।
डाॅ.राकेशचक्र के आते ही सक्षम उनसे लिपट गया जैसे उन्हें बहुत वर्षों से जानता हो। निशा ने चाय सर्व करते हुए डाॅ.राकेश चक्र से सक्षम द्वारा स्कूल वर्क आदि  करके न लाने व पढ़ाई में ध्यान केन्द्रित न करने के सम्बन्ध में शिकायत की तो उन्होंने अपने बैग से  ऐक्यूप्रेशर जिमी निकाली और सक्षम के हाथ-पैर के कुछ बिन्दुओं पर दबा-दबा कर देखने लगे। दोनों हथेलियों व दोनों पैरों के तलबों के बीचोबीच ऊर्जा केन्द्रों पर जिमी से दबाते ही सक्षम दर्द से उछल पड़ा साथ ही चारों हाथ-पैर के अँगूठों के अग्रभाग में यानि मस्तिष्क बिन्दुओं पर दबाने पर भी उसने दर्द महसूस किया तो डाॅ.राकेश चक्र समझ गये कि समस्या कहाँ है और क्या है। उन्होंने समझाया कि जब भी किसी का ऊर्जा केन्द्र शिथिल हो जाता है, वजन बढ़ने लगता है और  मस्तिष्क में विकार उत्पन्न होने लगते हैं तो ऐसी स्थिति में बच्चे का ध्यान एक जगह केन्द्रित नहीं हो पाता है। वह आलतू-फालतू बातों में भटकना शुरू हो जाता है। ऐसा ही सक्षम के साथ हो रहा है। बच्चा बहुत होशियार है। ऐसे बच्चों की मारने-पीटने से समस्या बिल्कुल भी हल नहीं होती।
डाॅ.राकेश चक्र की बात सुनकर निशा तो घबरा ही गई,-‘‘क्या कह रहे हैं अंकल? फिर क्या उपाय है इसका?’’
इसका  और इसके जैसे अनेक बच्चों का भी एकमात्र उपाय ये है कि इन्हें मारने-पीटने व इन पर चीखने-चिल्लाने की बजाय हथेलियों व पैर के तलवों के बीचोबीच स्थिति इनके ऊर्जा केन्द्रों व हाथ-पैर के चारों अँगूठों के अग्रभाग में स्थित मस्तिष्क केन्द्रों के बिन्दुओं को नियमित 15-20 दिन तक सहानुभूतिपूर्वक,धैर्य के साथ  ऐक्यूप्रेशर यंत्र जिमी से या हाथ के अँगूठे से धीरे-धीरे दबाया जाय। एक महीने में ही इसका ध्यान पढ़ाई में इतना केन्द्रित हो जायेगा कि फिर किसी शिकायत का मौका ही नहीं मिलेगा।
‘‘देखती हूँ अंकल।’’-कहते हुए निशा किचिन में घुस गई और दोपहर का भोजन बनाने लगी।डायनिंग टेबिल पर सभी का भोजन लगाने के बाद उसने सबसे भोजन करने का आग्रह किया तो सक्षम अपने भोजन की प्लेट उठाकर बैडरूम में चला गया और भोजन करते-करते टी.वी.पर कार्टून देखने लगा। डाॅ.चक्र ने देखा तो आवाज लगाई,-‘‘बेटा, भोजन करते समय टी.वी. नहीं देखते।’’
‘‘लेकिन बाबा, मम्मी तो भोजन करते समय रोजाना ही टी.वी. सीरियल देखती हैं।’’-सक्षम की बात सुनकर निशा ने उसकी ओर आँख तरेरी तो डाॅ.चक्र बीच में ही बोल पड़े,-‘‘बेटी, बच्चा वही करता है जो वह बड़ों से सीखता है,उन्हें करते देखता है इसलिए बच्चों वाले घरों में बड़ों को भी अपना व्यवहार सौम्य-शालीन और सही रखना जरूरी है तभी वे बच्चे की शिकायत के हकदार हैं।’’
‘‘साॅरी अंकल, आगे से ध्यान रखूंगी।’’-निशा ने माफी माँगते हुए कहा तो सक्षम भी बोल पड़ा,-‘‘ठीक है मम्मी, आगे से मैं भी ध्यान रखूँगा।’’-कहते हुए टी.वी.बन्द करके अपने भोजन की थाली उठाकर वह भी सबके बीच डायनिंग टेबिल पर आ बैठा। 

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बाल वाटिका  मार्च-2019 में प्रकाशित प्रेरक बाल कहानियाँ की समीक्षा

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